उत्तराखण्ड

कैलाश मानसरोवर यात्रा: आध्यात्म, धर्म और विज्ञान का अनोखा संगम, जानें क्यों खास है शिव का निवास स्थान

देहरादून: करीब पांच साल बाद कैलाश मानसरोवर की यात्रा इस साल 30 जून से शुरू होने जा रही है. इस बार कुल 250 भक्तों को ही यात्रा पर जाने की अनुमति मिली है. केंद्र सरकार के साथ-साथ उत्तराखंड सरकार भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा की तैयारियों में जुटी हुई है. भोलेनाथ के भक्त उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में लिपुलेख पास से होते हुए ही कैलाश मानसरोवर जाते हैं. कैलाश मानसरोवर न सिर्फ सनातनियों, बल्कि अन्य धर्मों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. आज उसी के बारे में आपको विस्तार से जानकारी देते हैं.

उत्तराखंड में कैलाश मानसरोवर यात्रा की जिम्मेदारी KMNV यानी कुमाऊं मंडल विकास निगम को सौंपी गई है. साल 1981 से KMNV ही कैलाश मानसरोवर यात्रा का संचालन कर रहा है. कैलाश मानसरोवर की यात्रा दिल्ली से शुरू होती है, फिर पिथौरागढ़ जिले के लिपुलेख पास मार्ग से होते हुए पूरी होती है. इस बार यात्रा के लिए कुल 250 यात्री होंगे जो 50-50 यात्रियों के पांच दल बनाये गये हैं.

कैलाश मानसरोवर यात्रा की धार्मिक मान्यता: कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव का घर कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ही भगवान शिव माता पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं. भगवान शिव का निवास माने जाने के कारण हिंदू धर्म में इसका खास महत्व है. साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रा को मोक्ष और आध्यात्मिक मुक्ति का प्रतीक भी माना जाता है. इसके साथ ही कैलाश पर्वत को ब्रह्मांड का केंद्र भी कहा जाता है.

पुराणों में भी कैलाश मानसरोवर का जिक्र: मत्स्य पुराण, स्कंद पुराण और शिव पुराण में कैलाश खंड नाम से एक-एक अलग अध्याय मौजूद हैं, जिनमें कैलाश पर्वत की महिमा का बखान किया गया है. मान्यता है कि कैलाश पर्वत से ऊपर स्वर्ग लोक और नीचे मृत्यु लोक है. यानी कैलाश पर्वत के ऊपर स्वर्ग का द्वार है.

सप्त ऋषि की गुफाएं: ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए इतिहासकार प्रो एमएस गुसाईं ने बताया कि कैलाश पर्वत पर सप्त ऋषि की गुफाएं हैं. इन सप्त ऋषियों में भारद्वाज, भृगु, गौतम, अत्रि, कश्यप, विश्वामित्र और वशिष्ठ शामिल हैं. सनातन धर्म के चार वेदों में ऋग्वेद को विश्व की प्राचीनतम पुस्तक माना जाता है, जिसमें कुल 10 मंडल हैं और दूसरे से 8वें मंडल के रचयिता भी यही सप्त ऋषि थे. ऐसे में कैलाश मानसरोवर की ऐतिहासिकता उत्तर वैदिक काल तक जाती है. उत्तर वैदिक काल 1000 से 600 ई० पूर्व के मध्य तक माना जाता है.

जानिए क्यों कहा जाता है मन सरोवर:

कैलाश मानसरोवर को मन सरोवर भी कहा जाता है. मान्यता के अनुसार कैलाश मानसरोवर को ब्रह्म के मन से निर्मित माना जाता है. कैलाश मानसरोवर यात्रा का महत्व सिर्फ सनातन संस्कृत में नहीं है, बल्कि बौद्ध और जैन धर्म में भी कैलाश मानसरोवर को काफी पवित्र स्थान और मोक्ष प्राप्ति का स्थान माना जाता है.
– प्रो एमएस गुसाईं, इतिहासकार –

बौद्ध धर्म के लिए पूजनीय स्थल: बौद्ध धर्म के लोगों के लिए ‘डेमचोक’ पूजनीय स्थल है. कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने कैलाश मानसरोवर में तपस्या की थी और बुद्ध की माता ने यहां की यात्रा की थी. ऐसे में इस स्थान की प्रमाणिकता बौद्ध स्रोतों के अनुसार 600 ई० पूर्व तक जाती है. इसी तरह बौद्ध संप्रदाय के लोग भी इसे अपना पवित्र स्थल मानते हैं.

जैन धर्म के संतों का भी पवित्र स्थल: इस स्थान को जैन धर्म के लोग उनके पहले तीर्थंकर ऋषभदेव का निर्वाण स्थल मानते हैं. वहीं सनातन धर्म में इस बात की मान्यता है कि द्वापर युग में महाभारत होने के बाद पांडवों ने स्वर्गारोहण यात्रा शुरू की थी. आखिर में धर्मराज युधिष्ठिर कैलाश पर्वत से स्वर्ग की सीढ़ी चढ़े थे.

साल 1981 से तत्कालीन राज्य सरकार और भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से कैलाश मानसरोवर यात्रा को संचालित किया जा रहा है. पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो पौराणिक यात्रा सनातन धर्म एक अभिन्न अंग रहा है.
– प्रो एमएस गुसाईं, इतिहासकार –

ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा 1981 से शुरू हुई है, बल्कि यह यात्रा वैदिक काल से ही संचालित हो रही है. कैलाश की 52 किमी लंबी परिक्रमा करने में लगभग दो से तीन दिन का समय लग जाता है. करीब 320 वर्ग मीटर में फैली कैलाश मानसरोवर झील को मन सरोवर यानी ब्रह्मा के मन से निर्मित माना जाता है. यही वजह है कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं में उत्साह रहता है.

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा लोगों की भावनाओं से जुड़ी हुई यात्रा है. 30 जून 2025 से कैलाश मानसरोवर की यात्रा शुरू हो जाएगी, जिसका संचालन कुमाऊं मंडल विकास निगम करेगा.

कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान ही भक्तों को ओम पर्वत और नाभीढांग के भी दर्शन होंगे. इन दोनों की काफी मान्यता है. मुख्य रूप से कैलाश पर्वत एशिया के क्लाइमेट को कंट्रोल करता है, जिसे मेरुदंड माना गया है. शास्त्रों में भी इसे नाभि यानी सेंटर प्वाइंट माना गया है. इसके साथ ही इस क्षेत्र में मैग्नेटिक फोर्सेज भी काफी अधिक हैं, जो प्रभावित करते हैं. कैलाश मानसरोवर अपने आप में एक पिरामिड की तरह बना हुआ है, जो कॉस्मिक किरणों को कंसंट्रेट करता है.

– सतपाल महाराज, धर्मस्व मंत्री, उत्तराखंड सरकार –

कैलाश मानसरोवर के वैज्ञानिक पहलू: कैलाश मानसरोवर संबंधित वैज्ञानिक पहलुओं की बात करें तो, कैलाश मानसरोवर में असीमित चुंबकीय क्षेत्र का प्रवाह है, जहां पर सामान्य आदमी का रह पाना संभव नहीं है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र में अलौकिक शक्तियां हैं. साथ ही वहां पर ओम की ध्वनि भी निकलती है जो लोगों को स्पष्ट रूप से सुनाई देती है. यही नहीं, वैज्ञानिक इस बात को मानते हैं कि कैलाश पर्वत ब्रह्मांड का केंद्र है, इसके एक तरफ उत्तरी ध्रुव और दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव स्थित है.

वैज्ञानिकों के अनुसार करीब 10 करोड़ साल पहले भूगर्भीय गतिविधियों के चलते कैलाश मानसरोवर पर्वत का निर्माण हुआ था. इसके साथ ही इस क्षेत्र में आज भी हिम मानव और कस्तूरी मृग मौजूद होने का दावा किया जाता है.

अब 22 दिनों में पूरी होगी यात्रा: कैलाश मानसरोवर की यात्रा पहले 28 दिन में संपन्न होती थी, लेकिन अब ये यात्रा 22 दिनों में पूरी हो जाती है. 30 जून 2025 को दिल्ली से 50 लोगों का पहला दल कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए रवाना होगा. ऐसे में 10 जुलाई को पिथौरागढ़ से दल लिपुलेख पास होते हुए चीन के कब्जे वाले तिब्बत में दाखिल होगा और 22 अगस्त को ये दल वहां से भारत के लिए वापस लौटेगा. यानी सिर्फ 22 दिनों में दल कैलाश मानसरोवर यात्रा को पूरा करेगा.

ये दल दिल्ली से रवाना होकर कर टनकपुर में रात्रि विश्राम करेगा. इसके साथ ही धारचूला में एक, गुंजी में दो रात्रि और नाभिढांग में दो रात रुकने के बाद चीन के कब्जे वाले तिब्बत में प्रवेश करेगा. चीन से वापसी में ये दल एक रात बूंदी, एक रात चौकोड़ी और एक रात अल्मोड़ा में रुकने के बाद दिल्ली पहुंचेगा.

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