कॉर्बेट नेशनल पार्क में चांदनी सफारी इको टूरिज्म जोन बनाने पर सुनवाई, राज्य सरकार से पूछे सवाल

नैनीताल: कॉर्बेट नेशनल पार्क के बैल पड़ाव रेंज में चांदनी सफारी इको टूरिज्म जोन बनाए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा है कि संबंधित विभागों से अनुमति ली है या नहीं? कोर्ट को बताएं. कोर्ट ने मौखिक तौर पर कहा है कि तब तक इस प्रकरण में अग्रिम निर्णय न लें.
वन विभाग ने दी ये दलील: आज सुनवाई के दौरान वन विभाग की तरफ से कहा गया कि ये अभी बनाया नहीं गया है, प्रस्तावित है. इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि इसके लिए केंद्र सरकार से अनुमति नहीं ली गई है. राज्य सरकार अपने स्तर से इसे बना रही है, जो कि पूरी तरह से नियमों के विरुद्ध है.
दरअसल, नैनीताल के गेबुआ, क्यारी और गजपुर छोई के निवासी मुकेश बिष्ट, देवेंद्र सिंह फर्त्याल, नवीन उपाध्याय ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने कहा है कि तराई पश्चिमी वन प्रभाग की ओर से बैल पड़ाव रेंज के 35 किलोमीटर एरिया को इको टूरिज्म के रूप में बढ़ावा देने के लिए विकसित किया गया है.
कॉर्बेट नेशनल पार्क में पहले से ही खुले हैं 15 टूरिज्म जोन: अब वन प्रभाग इस क्षेत्र में चांदनी सफारी ईको टूरिज्म के नाम से नया जोन खोल रही है. जबकि, कॉर्बेट नेशनल पार्क में पहले से ही 15 ईको टूरिज्म जोन खुले हुए हैं. याचिका में विभाग पर आरोप लगाए गए हैं कि सफारी जोन खोलने से पहले क्षेत्र के ग्रामीणों से सलाह मशविरा नहीं किया गया.
जो कि भारत सरकार की गाइडलाइन और वन अधिनियम 1980 का उल्लंघन है. गाइडलाइन में कहा गया कि सफारी जोन खोलने से पहले क्षेत्र के ग्रामीणों से सलाह मशविरा किया जाना आवश्यक है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. ऐसे में जोन खोलने को लेकर ग्रामीणों में आक्रोश है.
ग्रामीणों का कहना है कि मानवों का जंगल में आवागमन यानी दखलअंदाजी से वहां के जानवर प्रभावित होंगे. जिससे मानव वन्यजीव संघर्ष बढ़ेगा और पर्यावरण को भी क्षति होगी. जंगल से जानवर आबादी क्षेत्रों की ओर रुख करेंगे. इसलिए इस पर रोक लगाई जाए.
सरकार कह रही ये बात: वहीं, सरकार की तरफ से कहा गया कि जोन को इसलिए खोला जा रहा कि इस क्षेत्र का विकास होगा. ग्रामीणों को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे, इसलिए इसका विरोध ग्रामीणों को नहीं करना चाहिए.